शनिवार, 30 जून 2012

नितीश का सुसाशन एक छलावा

बिहार में जब लालू राबड़ी के १५ वर्षो के जंगल राज से आम जनता को मुक्ति मिली थी तो जनता के अन्दर एक उत्साह था की नितीश कुमार हमारे भावी उद्धारक बनेगे लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया लोगो का विस्वाश भी टूटता गया कारन था की जिस साशन और सुशाशन की चाहत बिहार की जनता को थी वो सुशाशन सिर्फ कागजो पर ही सिमटा था धरातल पर कही नजर नहीं आया ना तो कोई औधोगिक विकाश हुआ और ना ही आम जनता की भूख मिटी बढ़ा तो सिर्फ अफसर शाही हां आज बिहार का सच इतना ही है की बिहार के अफसर अब बिना राजनितिक दबाब के काम करते है और खुले आम तंत्र के साथ खिलवाड़ होता है जिसका नतीजा हुआ की आम जनता जिसे इस सरकार से कई उम्मीद थी वो उम्मीद पूरी तरह ख़त्म हो गई और आज पुनह वो आम जनता दिल्ली पंजाब का मुह देखती है आज बिहार के ग्रामीण इलाको में मर्द ढूंढने से नहीं मिलेंगे गाँव के गाँव मर्द विहीन है कारन है रोजगार की तलाश में अन्य सहरो में पलायन जिससे आरम्भ में ही बिहार की मीडिया ने बड़ा बढ़ा चढ़ा कर पेश किया की पालयन पूरी तरह से रुक चूका है नागरिको को उनके गाँव में ही रोजगार प्रदान सरकार द्वारा स्वयम सहयता समूह बना कर दिए जा रहे है छोटे छोटे उधोग लगाये जा रहे है ,उधोग के लिए बिजली उत्पादन किया जा रहा है ऋण दिए जा रहे है लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर कही नहीं हुआ ना तो उधोग ही लगे ना ऋण ही मिले ना ,बैंको पर दलाल जरुर हावी हुए और ना बिजली का उत्पादन हुआ साथ ही में बता दू अपराधिक ग्राफ में भी कोई कमी नहीं आई आरम्भ में तो अपराधियो का स्पीडी ट्राइल कर उन्हें सलाखों के अन्दर कुछ दिनों के लिए भेज दिया गया लेकिन कुछ ही दिनों बाद वो भी मीडिया की रिपोर्ट बन कर ही रह गई अपराधी खुले आम घटनाओ को अंजाम देकर घूम रहे है हत्या ,लुट अपहरण बदस्तूर जारी है और जनता त्राहि माम कर रही है थानों में रिपोर्ट दर्ज करवाना टेढ़ी खीर है अपराधिक ग्राफ कम करने के लिए रिपोर्ट ही दर्ज नहीं किये जाते है तो अपराध के दर में कमी तो दिखेगी ही आज सरकारी आकडे सच्चाई और पारदर्शिता से कोशो दूर है और इसी कारन विहार को इसेश राज्य का दर्जा दिलवाने की मुहीम छेड़ दी गई की हम तो काम करना चाहते है लेकिन केंद्र सरकार हमारे साथ पक्षपात कर रहा है जबकि केंद्र सरकार के पक्षपात की बात मानी जा सकती है लेकिन बिहार उतना भी बीमारू राज्य नहीं रहा है जितना की इसे प्रचारित कर किया गया और ये काम नितीश बाबु और उनकी सरकार ने खुद किया लालू के राज में भी जाति की राजनीती होती थी और जाति की राजनीती बिहार में आज भी हो रही है पहले सिर्फ लालू का माई समीकरण था लेकिन अब तो दलित ,महादलित और ना जाने कितने भागो में बिहार को बाट दिया गया लेकिन इतना बटने के बाद भी इन जातियो का कोई भला नहीं हुआ इनकी जमीनों पर भुमफिओं का कब्ज़ा है और आज भी ये खुले आसमान में जीवन यापन करने पर विवश है , और दो जून के रोटी के लिए तरस रहे है .हर वर्ष बाढ़ और सूखे से सैकड़ो मौत ,मुआवजे की घोषणा ,पुनर्वाश की घोषणा लेकिन सिर्फ कागजो तक ही और अब शिक्षा व्यवस्था पर आ जाये शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से चौपट हो चुकी है लालू के राज में चरवहा विद्यालय खुला तो सुसाशन में विद्यालयों में गुरु जी की भर्ती में बड़े पैमाने पर धांधली हुई जिसका नतीजा हुआ की गुरु जी को ककहरा भी नहीं आता तो आखिर गुरु जी बच्चो को क्या पढ़ाएंगे .विश्विद्यालय गुंडई का अड्डा बने हुए है कालेजो में शिक्षक नहीं है क्योकि शिक्षको के सेवानिवृत होने से पद रिक्त हो गए और नई बहाली नहीं हुई ,स्वास्थ व्यवस्था को ले ले तो अस्पताल बनवाये गए लेकिन डॉक्टर नहीं है तो अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े मरेंगे या बचेंगे ,सड़के बनी लेकिन दो महीने में ही गड्ढो में तब्दील कारन अधिकारिओ ने इतना कमिसन ले लिया की ठेकेदार बेचारा क्या करे अपना रुपया लगाकर काम करे ,अधिकारिओ को कमीशन दे और सड़क भी अच्छी बनाये ये तो हो नहीं सकता इस लिए गड्ढे तो झेलने ही पड़ेंगे इस राज्य में कोई काम हुआ तो शराब के ठेके बड़े पैमाने पर खुले हर गली चौक चौराहे पर आप को शराब की दुकान जरुर मिल जाएगी मधुशाला की वो पंक्ति सभी दुहराते मिल जायेंगे ” मंदिर मस्जिद बैर करते मेल कराती मधुशाला ” अब बिहार सूर्य अस्त होते ही मस्त हो जाता है नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को आज भले ही ब्रांड का रूप दे दिया हो लेकिन नितीश बाबु अभी इस ब्रांड से कोशो दूर ही दीखते है .  जितनी दूरदर्शिता लोगो ने इनमे देखि थी उसका आधा भी कर पाते तो आज बिहार बीमारू प्रदेश नहीं होता और ना ही किसी विशेष राज्य की मांग ही करनी पड़ती लेकिन जनता की अपेक्षाओ पर जनता दरबार लगाने के बाबजूद अभी तक खरे नहीं उतर पाए है और अब तो जनता दरबार भी सुना रहने लगा है लोक शाही पूरी तरह से हावी है इस सरकार पर जिसका नतीजा है की आम जनता खुद को सुरक्षित  नहीं समझ पा रही है भले ही मीडिया और सरकारी आकडे बिहार के परिवर्तित हालातों को बयां कर रहे हैं

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