शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

मुआवजा - दर्द की दास्ताँ ?

यह कहानी है उन परिवारों की जिस परिवार के मुखिया की मौत किसी ना किसी वजह से हो जाती है और सरकार वैसे परिवारों के लिए मुआवजे की घोषणा करती है और पीड़ित का पूरा परिवार मुआवजा हासिल करने के लिए दर दर की ठोकर खाता फिरता है .देश में आये दिन दुर्घटनाये होती रहती है जिसमे साल में लाखो लोग मारे जाते कोई सड़क दुर्घटना में तो कोई  रेल दुर्घटना में या फिर आतंकी हमलो यही नहीं कही बाढ़ में तो कही सुखाड़  में आये दिन लोग काल के गाल में असमय ही चले जाते और उसके एवज में  राज्य सरकार और केंद्र  सरकार द्वारा मुआवजे की घोसना बड़े ही जोर शोर से की जाती है पीड़ित परिवारों को सांत्वना दी जाती है की इस दुःख की घडी में हम आप के साथ है कभी भी किसी चीज की जरुरत हो हमें बताये आप को कोई दुःख नहीं होगा पीड़ित  परिवार इन बातो को सुन परिवार के मुखिया की मौत का गम कुछ देर के लिए भूल जाता है उसके बाद जो सच सामने आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते है , धनरुआ की कहानी कुछ इसी दर्द की दास्ताँ की उजागर करती है धनरुआ अपनी पत्नी सुखिया  और छोटे छोटे बच्चो के साथ अपना जीवन खुशी से बिताता था कोई गम ना था हर दिन कमाने खाने वाले धनरुआ को ना तो भगवान से कोई सिकायत थी और ना ही किसी और से जैसे उसका जीवन चल रहा था वही उसी में खुश था सुखिया भी अपने पति के साथ खुश थी और दिन भर धनरुआ के काम पर चले जाने के बाद बच्चो के साथ हस्ते खेलते दिन कट रहे थे लेकिन जैसे अचानक ही सुखिया की जिंदगी में तूफान आ गया धनरुआ अपने काम से लौट रहा था की तेज आती ट्रक ने ठोकर मार दी और वही उसकी मौत हो गई .लोगो ने सड़क जाम कर दिया मुआवजे की मांग करने लगे बेचारे इलाके के अधिकारी घटना स्थल पर पहचे और कर दी एक लाख रूपये मुआवजे की घोसना लोगो का गुस्सा सांत हुआ  धनरुआ का किसी तरह  क्रिया क्रम हो गया  अब बात आई की मुआवजा मिले तो कैसे सुखिया पहुची साहब के दफ्तर  बेचारी सुखिया को कभी दिन दुनिया से तो मतलब ना था उसे क्या मालूम   साहब के दफ्तर का  दस्तूर क्या है यहाँ तो बिना चढ़ाबे के कुछ होता ही नहीं पहले चढ़ावा चढ़ाओ फिर कोई बात बनेगी अब सुखिया बेचारी चढ़ावा  कहा से लाये एक ही तो धनरुआ था कमाने खिलने वाला उसकी मौत के बाद तो खाने को दाना भी नहीं बचा कई दिन से तो बच्चो को खिला कर खुद भूखे  ही सोने की नौबत बनी हुई है और यहाँ पहले साहब को पेशगी दो तभी काम बने नहीं तो बहार निकलो साहब के दफ्तर के चक्कर काटते   काटते  दिन महीने साल बीत गए लेकिन मुआवजा नहीं मिला सुखिया ने भी अब ठान लिया था की या तो वो मुआवजा लेगी या फिर साहबो को मजे चखाएगी बेचारी पहुची इलाके के मंत्री जी के पास बेचारे मंत्री जी थे राशिक मिजाज के सुखिया को देखा तो देखते ही रह गए बगल में बिठाया पूछा कैसे आना हुआ सुखिया ने अपनी दर्द भरी दास्ताँ मंत्री जी को सुनाई मंत्री जी ने आश्वाशन दिया अब चिंता मत करो अब तुम ठीक जगह पर आ गई तुम्हारा काम हो जायेगा तुम अमुक जगह पर पहुच जाना सुखिया बेचारी अनपढ़ ना समझ उसे क्या मालूम की मंत्री के मन में क्या है पहुच गई मंत्री के बुलाये स्थान पर और देख लिया मंत्री जी का हाल किसी तरह से जान बचा कर निकली सुखिया के सामने वही द्रश्य घुमने लगा जब धनरुआ की मौत हुई थी तो किस तरह से लोग उसे आश्वाशन देते लेकिन अब तो सारे बेगाने हो गए हर कोई लालच की नजर से ही देखता घूरता आखिर वो जाये तो जाये कहा हर जगह तो गुहार लगा चुकी सब ने तो उसे लुटने की कोसिस की और सुखिया ने अपने पैर बढ़ा दिए कुए की तरफ और बच्चो के साथ देखते ही देखते धनरुआ के पास पहुच गई दुसरे दिन फिर हंगामा लोगो का कोहराम और मुआवजे की घोषणा यह सच्चाई है आज के सरकारी घोषनाओ की घोषणा सिर्फ घोषणा ही रह जाते है वो कभी पुरे नहीं होते देश की सीमाओ पर सहीद होने वाले वीर सपूतो के परिवारों  से लेकर आम इन्सान तक इन घोषनाओ के मकड़ जाल में उलझ कर अपनी पूरी जिन्दगी गुजार देती है लेकिन मुआ मुआवजा नहीं मिलता मुआ मिलता है  उसी  को जो दफ्तर के दस्तूर से वाकिफ है ......?

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