बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

एक दोस्त कि कहानी ?

एक दोस्त कि कहानी ? 

अचानक ही सड़क से गुजरते वक्त नजर एक रिक्से वाले पर पड़ी देखा तो चौक गया क्योकि वो मेरे बचपन का मित्र श्याम था लेकिन श्याम रिक्सा चला रहा था ये बात कुछ समझ में नहीं आई आखिर इतना बुरा दिन कैसे आ गया श्याम का उससे पूछने और नजर मिलाने कि हिम्मत भी नहीं हो रही थी तब तक वो सवारी लिए आगे बढ़ चूका था और मुझे भी अपने काम में जाना था तो आगे बढ़ गया लेकिन पूरा दिन मस्तिष्क इसी उधेड़ बुन में लगा रहा कि आखिर श्याम कि ऐसी हालत क्यों हो गई साम में अन्य मित्रो से पता करने कि कोसिस कि तो पता चला कि जो श्याम १० वी कक्षा में ही में १०० रूपये कि नोट में तम्बाकू लपेट कर सिगरेट कि तरह पीता था अपनी साह खर्ची कि वजह से आज ऐसी स्थति पर पहुच गया कि दो जून कि रोटी के लिए रिक्शा चलाने पर मजबूर है . एक समय था जब श्याम को सभी मित्रो से अधिक पॉकेट मनी उसके पापा देते थे उसके पापा मछली के थोक व्यवसाई थे और सहर में उनकी अच्छी पहुच थी लेकिन उनकी मृत्यू के बाद श्याम अपनी साह खर्ची कि वजह से बने बनाये धंधे को बर्बाद करने के बाद अब पेट भरने के लिए रिक्सा चला रहा है . दोस्तों यह एक सच्ची घटना है और मुझे लगता है कि हमें इससे बहुत कुछ सिखने कि आवश्यकता है . अपने बहुमूल्य विचार जरुर दे कि में उस बचपन के मित्र के लिए क्या करू जिससे कि उसकी जिंदगी पुनः पटरी पर दौड़े 

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