सोमवार, 25 नवंबर 2013

नितीश सरकार के आठ साल का सच ?



बिहार कि नितीश सरकार ने आठ साल पुरे कर लिए है जिसका रिपोर्ट कार्ड आज बड़ी गर्म जोशी से इन्होने जारी  किया और सरकार कि उपलब्धिया गिनवाई है जिसमे सभी मोर्चे पर सरकार कि सफलता का गुणगान किया गया है लेकिन इसकी जमीनी सच्चाई क्या है ? अगर इन आठ वर्षो के शासन व्यवस्था का मुल्यांकन पहले  पाच वर्षो को छोड़ कर किया जाए  तो नतीजा शून्य निकलता है।  बिहार का आम नागरिक  होने के नाते सरकार के इन तीन वर्षो के कार्यकाल पर यही कहा जा सकता है की "हाथी के दाँत दिखाने के और खाने को अलग अलग होते है " वाली कहावत पूरी तरह यहाँ  चरितार्थ हुई है  ? शिक्षा , स्वास्थ्य , कानून व्यवस्था के साथ साथ पेयजल, परिवहन , बिजली का जितना ढिंढोरा पीटा जा रहा है जमीन पर कही नजर नहीं  आता।  जहा देखो बाबुओ का राज कायम है।  उच्य शिक्षा अपनी बदहाली पर आसुँ बहा रही है कॉलेज में शिक्षक नहीं है ,स्कुल में शिक्षक है तो उन्हें जनवरी फरबरी लिखना नहीं आता अस्पताल में बड़े बड़े बिल्डिंग बना  गए लेकिन बिना चिकित्सक के सफ़ेद हाथी बने हुए है।सदर अस्पताल रेफरल अस्पताल बने हुए है मरीज असमय काल के गाल में जाने पर विवश है  कानून व्यवस्था कि बात करे तो चोरी ,लूट , बलात्कार ,हत्या का ग्राफ बड़े पैमाने पर बढ़ा है ग्रामीण जलापूर्ति योजना अपनी बदहाली पर आसुँ बहा रही है। सहरी क्षेत्र में उचे ऊचे जलमीनार शोभा कि वस्तु बने हुए है। परिवहन कि बात करे तो प्राइवेट बस मालिको ने लूट मचा रखा है। मनमाना किराया इनके द्वारा उसुला जा रहा है बिजली कि बात करना आवश्यक है क्योकि गाव में आठ घंटे बिजली देने कि घोषणा बड़े जोर शोर से करते है मुख्यमंत्री जी लेकिन खुद इनके विधायक के गाव में तीन साल हो गए बिजली नहीं पहुची तमाम विभागो में भ्रस्टाचार का बोलबाला कायम है बस अब बिहार सूर्य अस्त होते ही मस्त हो जाता है क्योकि विकाश कही नजर आता है तो दारु के ठेके पर नजर आता है जो आज गली गली में खुल गए है ?

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